भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की राज्य कमेटी जयराम सरकार द्वारा वर्ष 2020-21 के लिए प्रस्तुत किया गया बजट केवल मात्र कोरी घोषणाओं का एक दस्तावेज पेश किया गया है और यह वास्तविकता से बिल्कुल परे व दिशाहीन बजट है। प्रदेश में आर्थिक विकास दर गत वर्ष की तुलना में 1.5 प्रतिशत की गिरावट के साथ 5.6 प्रतिशत के करीब रह गई है जोकि गंभीर चिंता का विषय है। प्रदेश सरकार का अभी तक 55 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज हो गया है और वर्तमान सरकार ने तो अपनी स्वीकृत कर्ज सीमा से अधिक कर्ज़ लेने का भी रेकॉर्ड बनाया है। इस विकट आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए सरकार के बजट में कोई दिशा ही नहीं है।
इस बजट में मुख्यमंत्री ने महज़ कोरी घोषणाओं को ही दर्शा कर जनता को भ्रमित करने का कार्य किया है। सरकार केवल इन्वेस्टर मीट को ही इस बजट में भी महिमामंडित कर अपनी उपलब्धियों का व्याख्यान कर रही है जबकि आज वैश्विक व देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण कोई भी नया निवेशक निवेश करने के लिए तैयार नहीं है। बजट आय व व्यय का लेखा जोखा होता है। परन्तु इसमे कहीं भी स्पष्ट नहीं है कि सरकार की आय किन किन साधनों से अर्जित होगी। केवल मात्र केंद्र व अन्य वित्त पोषित योजनाओं को ही इस बजट का मुख्य हिस्सा बना कर दर्शाया गया है जोकि स्पष्ट रूप से हकीकत से परे व भ्रमित करने वाला दस्तावेज है।
प्रदेश में आज 8.75 लाख से उपर पढ़े लिखे बेरोजगार रोजगार कार्यालय में पंजीकृत है। लाखों युवा ऐसे हैं जिन्होंने रोजगार कार्यालय में अपने नाम ही दर्ज नही करवाये है। सरकार के इस बजट में बेरोजगारी से निपटने के लिए कोई भी उपाय नहीं है। जिससे युवाओं में निराशा पैदा हुई है। इस बजट में नए रोजगार सृजन का कोई भी प्रावधान नही किया गया है।
प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों में आज 80 हज़ार से अधिक पद रिक्त पड़े हैं परन्तु सरकार केवल 20 हज़ार पदों को भरने की बात इस बजट में कर रही है। कर्मचारियों की कमी के कारण आज प्रदेश की जनता को पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित होना पड़ रहा है। सरकार द्वारा इस बजट में भी सेवाओं को आउटसोर्स करने पर ही अधिक बल दिया है जिससे सरकार की मंशा स्पष्ट हो जाती है कि प्रदेश सरकार भी केंद्र की बीजेपी सरकार की तरह ही प्रदेश में भी कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने वाली जनविरोधी नवउदारवादी नीतियो को लागू करने का कार्य कर रही है।
प्रदेश सरकार ने न्यूनतम वेतन केवल मात्र 250 रुपये से 275 रुपये कर प्रदेश के मजदूर वर्ग के साथ भद्दा मजाक किया है। आज कमरतोड़ महंगाई को देखते हुए दिल्ली की तर्ज़ पर न्यूनतम वेतन 500 रुपये बनता है जिसे न्यायालय ने भी अनुमोदित किया है। परन्तु प्रदेश सरकार ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया है। जिससे इसका मजदूर विरोधी चरित्र स्पष्ट होता है।
सरकार ने किसानों व बागवानों की आय बढ़ाने व उनके उत्पाद को उचित मूल्य के लिए कोई भी प्रावधान इस बजट में नही किया गया है। सरकार ने किसानों व बागवानों को लागत वस्तुओं में मिलने वाला अनुदान लगभग समाप्त कर दिया है। जिससे इनकी कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है और लागत क़ीमत बढ़ रही है जबकि बाजार में कृषि व बागवानी उत्पादों की कीमतों में लागत कीमत की तुलना में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। सरकार ने खाद, बीज, कृषि उपकरण, फफूंदीनाशक, कीटनाशक जैसी लागत वस्तुओं का तो इस बजट में कोई जिक्र तक नहीं किया है। कृषि व बागवानी में भी कॉर्पोरेट क्षेत्र को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। आज भी सरकार के पास हजारों किसानों व बागवानों का विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत करोडों रुपये का अनुदान वर्षों से बकाया है परन्तु सरकार इसको देने में विफल रही है।
सी.पी.एम. का मानना है कि प्रदेश सरकार का यह बजट प्रदेश में आर्थिक संकट को और बढ़ावा देगा और सरकार केवल कर्ज व जनता पर करों का बोझ बढ़ाएगी और सेवाओं के निजीकरण से जनता को इनसे वंचित करेगी। बेरोजगारी व कृषि का संकट और बढ़ेगा।
